Paris Olympics 2024: काका पवार और पप्‍पू यादव का किस्‍सा याद है न, ओलंपिक में इंडियंस की स्‍टोरी
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Paris Olympics 2024: काका पवार और पप्‍पू यादव का किस्‍सा याद है न, ओलंपिक में इंडियंस की स्‍टोरी

Paris Summer Olympics 2024: भारतीय खेलों और विशेष रूप से कुश्ती ने अपने अतीत से कोई सीख नहीं ली क्योंकि हर चार साल में होने वाले इस महाकुंभ में भाग लेने से पहले हमेशा विवादों का बोझ बना रहता है. 

Paris Olympics 2024: काका पवार और पप्‍पू यादव का किस्‍सा याद है न, ओलंपिक में इंडियंस की स्‍टोरी

Indian Players in olympics: काका पवार और पप्पू यादव को 1996 ओलंपिक तक ज्यादा लोग नहीं जानते थे. दोनों में सिर्फ दो चीजें समान थीं कि दोनों पहलवान थे और दोनों 48 किग्रा वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए मैट के अंदर और बाहर भिड़ंत को तैयार थे. लगभग 28 साल पहले दोनों के बीच भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए दिल्‍ली के आईजी स्टेडियम में भिड़ंत हुई थी. यादव ने विवादास्पद ट्रायल जीत लिया था लेकिन अटलांटा में वजन मापने की प्रक्रिया में विफलता के बाद उन्हें ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई.

भारतीय खेलों और विशेष रूप से कुश्ती ने अपने अतीत से कोई सीख नहीं ली क्योंकि हर चार साल में होने वाले इस महाकुंभ में भाग लेने से पहले हमेशा विवादों का बोझ बना रहता है. छह भारतीय पहलवान सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त और साक्षी मलिक जैसे नायकों की विरासत को आगे बढ़ाने का लक्ष्य बनाये हैं. लेकिन उन्हें पता है कि पेरिस जाने वाली टीम में जगह बनाने के लिए उन्हें कई बाधाओं को पार करना पड़ा है जिसमें एक साल तक विरोध प्रदर्शन भी शामिल है, जिसके कारण उनकी तैयारियों में बाधा पड़ी.

पवार और यादव इसी व्यवस्था के शिकार थे जो आज भी मौजूद है. दोनों 48 किग्रा वर्ग में अंतरराष्ट्रीय कुश्ती संस्था द्वारा दिए गए वाइल्डकार्ड स्थान के लिए भिड़ रहे थे. राजनीतिक दिग्गजों ने दोनों पहलवानों का समर्थन किया जिससे यह बड़ा विवाद बन गया जिसमें रेफरी को फिक्स करने से लेकर वजन मापने में धांधली करने के आरोप लगे.

हालांकि यादव ने विवादास्पद मुकाबला जीत लिया और अटलांटा चले गए, लेकिन वे वजन मापने की प्रक्रिया में विफल हो गये और बिना प्रतिस्पर्धा के ही वापस लौट आए.

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नरसिंह यादव Vs सुशील कुमार
ऐसा ही नरसिंह यादव के साथ 2016 रियो ओलंपिक से पहले हुआ था, हालांकि कारण अलग था. नरसिंह ने 74 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में भारत को ओलंपिक कोटा दिलाकर सभी को चौंका दिया था.

अंतरराष्ट्रीय कुश्ती महासंघ ने दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के भार वर्ग (66 किग्रा) को खत्म कर दिया था जिसके बाद इस पहलवान को 74 किग्रा वर्ग में खेलना पड़ा.

सुशील ने ओलंपिक में पदकों की हैट्रिक लगाने की उम्मीद में ट्रायल के लिए अनुरोध किया ताकि यह तय किया जा सके कि उनमें और नरसिंह में से किसे रियो जाना चाहिए. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने नरसिंह के चयन को चुनौती देने वाली सुशील की याचिका को खारिज कर दिया. इससे नरसिंह को खेलने की अनुमति मिल गई.

हालांकि ओलंपिक से तीन सप्ताह पहले नरसिंह को प्रतिबंधित दवा के लिए पॉजिटिव पाया गया. पहलवान ने खुद को फंसाने का आरोप लगाया और राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) ने उन्हें डोपिंग के आरोपों से मुक्त कर दिया. हालांकि ओलंपिक में भाग लेने का उनका सपना तब टूट गया जब खेल पंचाट ने नाडा द्वारा उन्हें दी गई क्लीनचिट के खिलाफ विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी की अपील को बरकरार रखा.

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पेरिस ओलंपिक से पहले कुश्ती फिर से गलत कारणों से चर्चा में रही, जब छह शीर्ष पहलवानों ने तब डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ एक साल तक विरोध प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय संस्था को ‘यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग’ और खेल मंत्रालय दोनों ने अलग अलग कारणों से निलंबित कर दिया.

अब नए पदाधिकारियों के नेतृत्व में एक नया राष्ट्रीय महासंघ स्थापित हो चुका है. इस विरोध और अदालती मामलों ने भारतीय कुश्ती को जो नुकसान पहुंचाया है वह पेरिस के लिए क्वालीफाई करने वाले पुरुष पहलवानों की संख्या से साफ झलकता है. अमन सेहरावत एकमात्र पुरुष पहलवान हैं जो पेरिस में अपनी किस्मत आजमाएंगे.

भारोत्तोलन ने भारत को ओलंपिक में काफी गौरव दिलाया है जिसमें कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था और मीराबाई चानू ने तोक्यो 2021 में रजत पदक जीता था. लेकिन सनमाचा चानू और प्रतिमा कुमारी ने 2004 एथेंस ओलंपिक में डोपिंग के कारण भारत को बदनाम किया था जबकि इससे कुछ दिन पहले डबल-ट्रैप निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने खेलों में भारत को अपना पहला व्यक्तिगत रजत पदक दिलाया था.

बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिए एकमात्र भारोत्तोलक मोनिका देवी ‘एनाबॉलिक’ पदार्थ के लिए पाजिटिव आने के बाद इसमें हिस्सा लेने से चूक गईं.

निशानेबाजी
राठौड़ के रजत पदक जीतने और 2008 में बीजिंग में अभिनव बिंद्रा के देश का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने के बाद से निशानेबाज भारतीय दल का गौरव रहे हैं. पिस्टल निशानेबाज विजय कुमार और राइफल निशानेबाज गगन नारंग ने 2012 लंदन में इसी परंपरा को बरकरार रखा. लेकिन भारतीय निशानेबाज 2016 रियो और टोक्‍यो 2021 में पदक जीतने में विफल रहे.

पिछली बार युवा पिस्टल निशानेबाज मनु भाकर के कोच जसपाल राणा का चर्चित विवाद छाया रहा था. ओलंपिक में इस निशानेबाज की पिस्टल की खराबी और उसके बाद की घटनाओं ने निराश किया.

तब भारतीय राष्ट्रीय निशानेबाजी महासंघ के प्रमुख रनिंदर सिंह ने जसपाल पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘नकारात्मक’ कारक करार दिया था.

भारत के रिकॉर्ड 21 निशानेबाज कुछ दिन में पेरिस में हिस्सा लेंगे और उम्मीद है कि वे इस बार पदक दिलाकर इस मिथक को तोड़ने में सफल रहेंगे.

एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता डबल ट्रैप निशानेबाज रंजन सोढ़ी और 2012 लंदन ओलंपिक के रैपिड फायर रजत पदक विजेता विजय कुमार सहित कई पूर्व निशानेबाजों का मानना ​​है कि तैयारियां आदर्श नहीं रही हैं जिसके पीछे टीम के चयन में काफी देरी के साथ तैयारियों का तरीका रहा है.

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